पूरी दुनिया इन दिनों कोरोना के नए वैरिएंट ओमिक्रॉन (Covid Variants Omicron) को लेकर दहशत में हैं. तमाम मुस्तैदी के बावजूद अब भारत में भी इस बेहद खतरनाक वैरिएंट ने दस्तक के दे दी है. एक्सपर्ट्स मानते हैं कि ओमिक्रॉन वैरिएंट इससे ठीक पहले आए डेल्टा वैरिएंट का वारिस नहीं है बल्कि एक नए तरह का वायरस है.
ये डेल्टा वैरिएंट (Delta Variant) से 6 गुना ज्यादा संक्रमण फैला सकता है. परेशानी ये भी है कि इसका पता RT-PCR टेस्ट (RT-PCR Test) से नहीं चलता. इसके लिए जीनोम सीक्वेसिंग करनी पड़ती है. ऐसे में ये जानना दिलचस्प होगा कि आखिर नए वेरिएंट की खोज कैसे होती है? ये जीनोम सीक्वेंसिंग (Genome Sequencing) का चक्कर क्या है? सबसे पहले जान लेते हैं कैसे पता चला ओमिक्रॉन वैरिएंट का.
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गुरुवार यानी 3 दिसंबर तक ओमिक्रॉन वैरिएंट दुनिया के 30 देशों में फैल चुका था. परेशानी ये है कि इसका पता जीनोमी सीक्वेंसिंग से ही संभव है...ये पूरा प्रोसेस बेहद रोमांचक है. हालांकि इसे जानने से पहले हमें जानना होगा कि जीन, जीनोम और जीनोम सीक्वेंसिग होता क्या है?
अब तक आप समझ गए होंगे की जीन और जीनोम किसे कहते हैं. लेकिन सबसे अहम है जीनोम सीक्वेंसिग क्योंकि दुनिया भर में वायरस के किसी भी प्रकार का पता इसी से चलता है. लिहाजा समझ लेते हैं इस अहम चीज को
अब लगे हाथ ये भी जान लेते हैं कि भारत में जीनोम सीक्वेंसिंग की क्या स्थिति है? दरअसल भारत सरकार ने 25 दिसंबर 2020 को कोरोना की जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए एक फोरम बनाया.
इसका नाम INSACOG यानी Indian SARS-CoV-2 Consortium on Genomics रखा गया. ये देशभर में मौजूद जीनोम सीक्वेंसिंग लैब्स के कंसोर्टियम की तरह काम करता है. इसके तहत देशभर में 10 प्रयोगशालाएं काम करती हैं.