पांच राज्यों के चुनाव नतीजों ने महीने भर या उस से पहले से उठ रहे कई सवालों के जवाब 2 मई को दे दिए लेकिन कुछ सवाल अभी भी ऐसे हैं जिनके जवाब दिए जाने बाकी हैं. इन सवालों में जो सबसे बड़ा सवाल है उसमें पहला ये कि राष्ट्रीय राजनीति में कांग्रेस अब कहां खड़ी है और दूसरा ये कि राहुल गांधी की अब भूमिका क्या होगी, कौनसे ऐसे बिंदु हैं जोकि राहुल गांधी की राह का रोड़ा बने हुए हैं.
पांच राज्यों के चुनाव में अगर सबसे ज्यादा मेहनत कहीं राहुल गांधी ने की थी तो वो राज्य था केरल. मेहनत यहां लाजिमी भी थी. एक तो राहुल खुद यहां से सांसद हैं दूसरा जो केरल का पोलिटिकल ट्रेंड है उसमें एक बार LDF और UDF के हाथ सत्ता आती है. LDF सत्ता में थी ही तो UDF की सामने पूरा मौका था लेकिन कांग्रेस और उसके सहयोगी दल ये मौका भुना नहीं पाए.
तमाम दमखम के बावजूद UDF यहां वाम गठबंधन से आधी सीटें भी नहीं जीत पाया. केरल की इस हार के पीछे जो कारण गिनाये जा रहे हैं उसमें अहम हैं
केरल में क्यों डूबी कांग्रेस की लुटिया
\\\ कांग्रेस पार्टी की आंतरिक कलह
\\\ पूर्व मुख्यमंत्री ओमान चांडी और रमेश चेन्नीथला के बीच विवाद
\\\ पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव केसी वेणुगोपाल का सीमित प्रभाव
\\\ उत्तर भारत का पॉलिटिकल पैटर्न सेट करने का आरोप
अगर कोई कहे कि केरल के अलावा राहुल गांधी ने कहां सबसे ज्यादा मेहनत की तो वो राज्य है असम. राहुल ने यहां कई जनसभाएं की. ऐसा अनुमान था कि साल 2019 में हुआ CAA-NRC विरोधी आंदोलन जिसकी सबसे मुखर आवाज कांग्रेस भी थी वो इस मुद्दे को असम में भुना पाएगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ और यहां भी बाजी बीजेपी ने मार ली और प्रदेश की सत्ता में कांग्रेस की वापसी का सपना सपना ही रह गया. केरल और असम में तो जो हुआ सो हुआ लेकिन बंगाल में तो पार्टी का सूपड़ा ही साफ हो गया और राहुल जैसे इसका मन बना कर ही बैठे थे. आधा चुनाव बीतने के बाद राहुल गांधी यहां प्रचार के लिए आए और मात्र कुछ जगहों पर प्रचार कर उन्होंने कोरोना की दुहाई देते हुए प्रचार टाल देने की बात कही. राज्य में कांग्रेस की जो स्थिति अब है वैसी पहले कभी नहीं रही.
फिर एक बार... कांग्रेस खाली 'हाथ'
\\\ असम में राहुल ने की मेहनत, लेकिन नहीं मिली सफलता
\\\ CAA-NRC को असम में ही बीजेपी के खिलाफ मुद्दा नहीं बना पाए
\\\ पश्चिम बंगाल में कांग्रेस का सूपड़ा साफ
\\\ बंगाल में कांग्रेस के काम नहीं आया वाम दलों का साथ
वीओ: कांग्रेस थोड़ी बहुत खुश तमिलनाडु के नतीजों को देख हो सकती है लेकिन यहां भी उसकी भूमिका बेहद छोटी है और उसकी खुशी का आधार केवल इतना है कि वो राज्य में DMK की सहयोगी है. पार्टी की स्थिति ये है कि पुडुचेरी में भी वो अपने को नहीं संभाल पाई. रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण इस केंद्रशासित प्रदेश में अब भाजपा नेतृत्व वाला गठबंधन अगली सरकार बनाएगा. अब सवाल ये कि पार्टी का भविष्य क्या है...तमाम कोशिशों के बावजूद उसे वोट नहीं मिल रहे. इसका एक जो सबसे बड़ा कारण है वो ये कि राहुल गांधी अनगिनत प्रयासों के बावजूद विपक्ष का सर्वमान्य चेहरा नहीं बन पा रहे हैं. खुद पार्टी के भीतर 23 वरिष्ठ नेताओं का समूह नेतृत्व पर सवाल उठा रहा है. जाहिर है अब कांग्रेस को देखना है कि वो वफादारों की आवाज सुनती है या फिर कामदारों को आगे बढ़ाती है.