11 सितंबर 2001
ये वो तारीख है जिसे ना केवल अमेरिका बल्कि आतंक के खिलाफ जंग लड़ रहा दुनिया का कोई मुल्क़ कभी नहीं भुला सकता. इस दिन अमेरिका के नागरिकों एक ऐसा हमला झेला जिसके जख़्म आज तक ना केवल हरे हैं बल्कि रिस भी रहे हैं. न्यूयॉर्क वासियों के लिए वो एक आम सुबह थी लेकिन सिर्फ 8.45 मिनट तक के लिए. शहर की दो सबसे ऊंची इमारतों में से पहली के साथ विमान इसी समय टकराया था. सुबह के 10.28 मिनट पर महज़ 11 सेकेंड में ये 110 मंज़िला इमारत मलबे के ढेर में तब्दील हो गई. ऐसा ही इसकी साथ खड़ी इसकी दूसरी विंग के भी साथ हुआ. 09.03 बजे दूसरे ट्विन टावर से विमान टकराया और 9 सेकेंड के भीतर ये इमारत भी धुल के गुबार से ज्यादा कुछ नहीं थी.
हमले के बाद सवाल उठे कि इतनी मजबूत संरचना आखिर ताश के पत्तों की तरह बिखरी तो बिखरी कैसे. मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी के एक जांच दल ने इसका पता लगाया और उनकी फाइंडिंग्स में जो सामने आया वो ये था कि-
जांच दल का कहना था कि अगर उस दिन इमारत में आग ना फैली होती तो तो शायद इमारतें इस तरह से ना भी ढहती. हालांकि यहां ये कहना भी गलत नहीं होगा कि इस हमले ने कई देशों के रिश्तों, राजनयिक संबंधों और कुछ ख़ास लोगों को लेकर कायम धारणाओं को भी ढहा दिया था. बावजूद इसके एक चीज जो उस समय भी अडिग रही... और आज भी कायम है वो है अमेरिकियों का खुद पर विश्वास और दुनिया के अलग अलग हिस्सों में आतंक को झेल रहे आम लोगों का हौसला.
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